बी ए - एम ए >> बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्रसरल प्रश्नोत्तर समूह
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बीए सेमेस्टर-3 शिक्षाशास्त्र
अध्याय - 4
आदर्शवाद
(Idealism)
प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
अथवा
आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? दर्शन की एक विचारधारा के रूप में आदर्शवाद के प्रमुख सिद्धान्तों का विवेचन कीजिए।
अथवा
आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
उत्तर -
आदर्शवाद का अर्थ एवं परिभाषाएं
(Meaning and Definitions of Idealism)
आदर्शवाद का आधार आध्यात्म है। आदर्शवाद मूलभूत रूप से शाश्वत मूल्यों एवं आदर्शों को स्वीकार करता है। इस विचारधारा के अनुसार भौतिक जगत की कोई भी वस्तु शाश्वत नहीं है अतः इनका विशेष महत्व नहीं है। इस विचारधारा के अनुसार आत्मा परमात्मा और विचार ही शाश्वत है। आदर्शवाद के आदि प्रवर्तक प्लेटों के अनुसार प्रत्यक्षों या विचारों का एक वास्तविक विचारों के प्रकटीकरण से ही यह भौतिक जगत बना है।" इसी मत को प्रत्ययवाद या विचारवाद कहा जाता है। परन्तु बाद में विभिन्न आध्यात्मवादी सिद्धान्तों के आधार पर विभिन्न रूपों में आदर्शवाद को प्रस्तुत किया गया। आदर्शवाद एक जटिल विचारधारा है अतः इसे विभिन्न रूपों में परिभाषित किया गया है। आदर्शवाद मन की प्रकृति को वास्तव में स्वीकार करता है। वही बात या तथ्य सत्य एवं वास्तविक हो सकता है जो अनिवार्य रूप से आध्यात्मिक या मानसिक हो। आदर्शवाद का अर्थ स्पष्ट करने के लिए पेट्रिक ने तुलनात्मक रूप से आदर्शवाद तथा भौतिकवाद का अन्तर स्पष्ट किया है। भौतिकवाद इस संसार का आधार 'पदार्थ' को स्वीकार करता है परन्तु आदर्शवाद में 'मस्तिष्क' को संसार का आधार माना है। आदर्शवाद के अनुसार मन पहले है तथा पदार्थवाद बाद में श्री पेट्रिक का कथन है, कि आदर्शवादियों का विश्वास है कि संसार का एक निश्चित अर्थ एक निश्चित अभिप्राय और शायद निश्चित लक्ष्य है और सृष्टि के हृदय तथा मनुष्य की आत्मा में एक प्रकार का आन्तरिक सामंजस्य है। यह सामंजस्य ऐसा है कि मानव बुद्धि प्रकृति के बाह्य को भेदकर कम से कम कुछ सीमा तक आन्तरिक शक्ति परमतत्व तक पहुँच सकती है। आदर्शवाद का परिचय प्राप्त करने के लिए विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रतिपादित परिभाषाएं निम्नलिखित हैं-
1. हार्न की परिभाषा - हार्न ने आदर्शवाद की परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है।-
"आदर्शवाद का सार यह है कि ब्रह्माण्ड बुद्धि एवं इच्छा की अभिव्यक्ति है। विश्व के स्थायी तत्व की प्रकृति मानसिक है और भौतिकता की वृद्धि द्वारा व्याख्या की जाती है।"
2. बूबेकर द्वारा परिभाषा - बूबेकर ने मस्तिष्क को सर्वोपरि स्वीकार करते हुए आदर्शवाद की परिभाषा इन शब्दों में प्रस्तुत की है, "आदर्शवादियों का कहना है कि संसार को समझने के लिए मस्तिष्क सर्वोपरि है। इनके लिए सबसे अधिक वास्तविक बात कोई नहीं है कि मस्तिष्क संसार को समझने में लगा रहे हैं किसी और बात को मस्तिष्क से अधिक वास्तविक समझना स्वयं मस्तिष्क की कल्पना होगी।"
3. हैन्डरसन द्वारा परिभाषा - हैन्डरसन ने मनुष्य के आध्यात्मिक पक्ष को आदर्शवाद का आधार मानते हुए इन शब्दों में आदर्शवाद की परिभाषा प्रस्तुत की है, "आदर्शवाद मनुष्य के आध्यात्मिक पक्ष पैर बल देता है। इसका कारण यह है। आध्यात्मिक मूल्य मनुष्य और जीवन के सबसे महत्वपूर्ण पक्ष हैं। आदर्शवादियों का विश्वास है कि मनुष्य अपने सीमित मस्तिष्क को असीमित मस्तिष्क से प्राप्त करता है वे यह मानते हैं कि व्यक्ति और संसार दोनों बुद्धि की अभिव्यक्तियां हैं। वे कहते हैं कि भौतिक संसार की व्याख्या मस्तिष्क से ही की जा सकती है।"
आदर्शवाद के आधारभूत सिद्धान्त
(Basic Principles of Idealism)
आदर्शवाद के अर्थ एवं परिभाषा के विवेचन के उपरान्त विचारधारा के सिद्धान्तों को जानना भी अनिवार्य है। आदर्शवाद के आधारभूत सिद्धान्त निम्न वर्णित हैं -
1. मनुष्य का जड़ कृति की अपेक्षा अधिक महत्व - हमारा समस्त जगत दो भागों में विभक्त किया जा सकता है या जड़ एवं चेतना। चेतन जगत का प्रतिनिधित्व मनुष्य करता है। आदर्शवाद के सिद्धान्तों के अनुसार जड़ प्रकृति की तुलना में चेतन मनुष्य का अधिक महत्व है। इस महत्व का एक मुख्य कारण मनुष्य की बौद्धिक शक्ति भी है। मनुष्य को समस्त जड़जगत का ज्ञान प्राप्त है वह अपने ज्ञान से जड़जगत पर नियन्त्रण स्थापित करता है तथा अपनी संस्कृति का विकास करता है। एक मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जो अपने आध्यात्मिक विकास के लिए प्रयास करता है। इन्हीं समस्त विशेषताओं के कारण मनुष्य का महत्व सर्वाधिक है।
2. आध्यात्मिक जगत का विशेष महत्वं - आदर्शवाद की मान्यताओं के अनुसार भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक जगत का अधिक महत्व है। वास्तव में आध्यात्मिक जगत ही सत्य है। भौतिक जगत मिथ्या मात्र है। इसी तथ्य को फिश्नर ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है "विश्व का भौतिक पहलू सार्वभौमिक मस्तिष्क का केवल बाहरी प्रकटीकरण है। इसी प्रकार हार्न ने स्पष्ट किया है, "आदर्शवाद की मान्यता है कि विश्व का क्रम नित्य एवं आध्यात्मिक सत्यता से देश एवं काल में प्रकटीकरण के कारण चलता है।'
3. आध्यात्मिक मूल्यों का विशेष महत्व - आदर्शवादी मान्यताओं के अनुसार आध्यात्मिक मूल्यों का अधिक महत्व है। आध्यात्मिक मूल्य हैं, सत्यं शिवं सुन्दरं। ईश्वर के साक्षात्कार के लिए इन मूल्यों को जानना अनिवार्य है। इनके पूर्व साक्षात्कार से ही ईश्वर का साक्षात्कार किया जा सकता है। इन्हीं तथ्यों को ध्यान में रखकर आध्यात्मिक मूल्यों को विशेष महत्व दिया जाता है। इन महत्वपूर्ण मूल्यों के साक्षात्कार के लिये ज्ञान इच्छा तथा चेष्टा अनिवार्य है। ये तीनों क्रियाएं मन द्वारा परिचलित होती हैं। इन मूल्यों के महत्व को रॉस ने इन शब्दों में स्पष्ट किया है- “सत्यं शिवं सुन्दरं से निरपेक्ष गुण है जिनमें से प्रत्येक अपनी आवश्यकता के कारण उपस्थित है और वह अपने आप में पूर्णतया वांछनीय है।
4. विचार का वस्तु की अपेक्षा अधिक महत्व - भौतिक जगत की प्रत्येक वस्तु का हमारे मस्तिष्क में एक ही विचार होता है। आदर्शवाद के अनुसार भौतिक वस्तु की अपेक्षा इस विचार का महत्व अधिक होता है। यह मानसिक विचार या प्रयास ही वास्तव में सत्य होता है। वास्तव में विचार अमर एवं शाश्वत होते हैं, वे नष्ट नहीं होते परन्तु भौतिक वस्तुएं नष्ट हो जाती हैं, विचार सूक्ष्म होते हैं तथा मस्तिष्क में रहते हैं। विचार आदि काल से ही हैं तथा यदि एक बार वस्तु नष्ट भी हो जाये तो इस विचार के आधार पर उसका पुनः निर्माण किया जा सकता है। इसलिये विचार का वस्तु की अपेक्षा महत्व है।
5. अनेकत्व में एकता का सिद्धान्त - आदर्शवाद के अनुसार अनेकत्व में एकत्व को स्वीकार किया गया है। विश्व में प्रतीत होने वाली विभिन्नता के पीछे एकता भी है। यह एकता ईश्वर, चेतन अथवा सत्य के रूप में नियन्त्रणकारी शक्ति है। शिक्षा के उद्देश्य का उल्लेख करते हुए कहा गया है कि इसी परमशक्ति का साक्षात्कार करना ही शिक्षा का मुख्य उद्देश्यपूर्ण समझना चाहिए।
6. आत्मा और परमात्मा का अनादि-अनन्त अस्तित्व - आदर्शवाद का एक सिद्धान्त यह है कि आत्मा और परमात्मा का अस्तित्व है तथा ये आदि एवं अनन्त हैं। परमात्मा को स्थूल इन्द्रियों द्वारा देखा सुना नहीं जा सकता है परन्तु मन द्वारा इसका अनुभव किया जा सकता है। परमात्मा को सत्य के माध्यम से जाना जा सकता है। इसी प्रकार आत्मा को भी सूक्ष्म अनादि तथा अनन्त स्वीकार किया गया है। कुछ आदर्शवादी आत्मा और परमात्मा का ही एक अंश स्वीकार करते हैं बल्कि कुछ विचारकों ने आत्मा की स्वतन्त्र सत्ता को स्वीकार किया है।
7. सत्य विचार आचरण तथा उच्च चरित्र का महत्व - आदर्शवाद में आचरण को भी विशेष महत्व दिया जाता है। परम लक्ष्य अर्थात् आत्मानुभूति के लिये सत्य- विचार, आचरण एवं उच्च चरित्र का होना भी आवश्यक है। इससे यह लोक तथा परलोक दोनों का ही सुधार होता है।
8. आध्यात्मिक शक्तियों के आधार पर मानव विकास - आदर्शवाद के अनुसार मानव-विकास आध्यात्मिक शक्तियों के आधार पर होता है। इस मान्यता के अनुसार मनुष्य को कुछ आध्यात्मिक शक्तियाँ उपलब्ध हैं इन्हीं शक्तियों एवं सभ्यता एवं संस्कृति के द्वारा मनुष्य के अपने भौतिक पर्यावरण को नियन्त्रण करता है तथा क्रमशः आत्मानुभूति की दिशा में अग्रसर होता है जोकि मनुष्य का परम लक्ष्य है।
9. राज्य की सत्ता सर्वोच्च - सामाजिक एवं सामुदायिक जीवन में आदर्शवादी राज्य की सत्ता को सर्वोच्च मानते हैं। व्यक्ति की अपेक्षा राज्य का महत्व अधिक है। राज्य एवं राज्य की सत्ता को विशेष महत्व दिया गया है। प्लेटो, हेगेल तथा फिल्टे आदि आदर्शवादियों ने हर प्रकार से राज्य की सत्ता को ! महत्वपूर्ण माना है।
10. आत्मानुभूति परम लक्ष्य है - आदर्शवाद की मान्यताओं के अनुसार मनुष्य का जीवन सप्रयोजन है। मनुष्य का अस्तित्व उसकी आत्मा अनादि तथा अनन्त है तथा परमात्मा का अंश है। परन्तु अज्ञानवश मनुष्य आत्मा के इस स्वरूप को नहीं जान पाता जब मनुष्य को इस सत्यता का ज्ञान हो जाता है तो उसे परम आनन्द की प्राप्ति होती है तथा यही स्थिति आत्मानुभूति की होती है आत्मानुभूति ही मनुष्य का परम लक्ष्य है।
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- प्रश्न- शिक्षा के संकुचित तथा व्यापक अर्थों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा की अवधारणा स्पष्ट कीजिए तथा शिक्षा की परिभाषा देते हुए इसकी विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के विभिन्न स्वरूपों की व्याख्या कीजिए। शिक्षा तथा साक्षरता एवं अनुदेशन में क्या मूलभूत अन्तर है?
- प्रश्न- शिक्षा के वैयक्तिक एवं सामाजिक उद्देश्यों की विवेचना कीजिए तथा इन दोनों उद्देश्यों में समन्वय को समझाइए।
- प्रश्न- "दर्शन जिसका कार्य सूक्ष्म तथा दूरस्थ से रहता है, शिक्षा से कोई सम्बन्ध नहीं रख सकता जिसका कार्य व्यावहारिक और तात्कालिक होता है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- निम्नलिखित को परिभाषित कीजिए तथा शिक्षा के लिए इनके निहितार्थ स्पष्ट कीजिए - (i) तत्व-मीमांसा, (ii) ज्ञान-मीमांसा, (iii) मूल्य-मीमांसा।
- प्रश्न- शिक्षा का दर्शन पर प्रभाव बताइये।
- प्रश्न- अनुशासन को दर्शन कैसे प्रभावित करता है?
- प्रश्न- शिक्षा दर्शन से आप क्या समझते हैं? परिभाषित कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन क्या है? वेदान्त दर्शन के सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। वेदान्त दर्शन में प्रतिपादित शिक्षा के उद्देश्य, पाठ्यचर्या व शिक्षण विधियों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के शिक्षा में योगदान का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन की तत्व मीमांसा ज्ञान मीमांसा एवं मूल्य मीमांसा तथा उनके शैक्षिक अभिप्रेतार्थ की व्याख्या कीजिये।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन के अनुसार शिक्षार्थी की अवधारणा बताइए।
- प्रश्न- वेदान्त दर्शन व अनुशासन पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत शिक्षा के मूल सिद्धान्त बताइए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन में दी गयी ब्रह्म की अवधारणा व उसके रूप पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- अद्वैत वेदान्त दर्शन के अनुसार आत्म-तत्व से क्या तात्पर्य है?
- प्रश्न- गीता में नीतिशास्त्र की विस्तृत व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- गीता में भक्ति मार्ग की महत्ता क्या है?
- प्रश्न- श्रीमद्भगवत गीता के विषय विस्तार को संक्षेप में समझाइये |
- प्रश्न- गीता के अनुसार कर्म मार्ग क्या है?
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षा का क्या अर्थ है?
- प्रश्न- गीता दर्शन के अन्तर्गत शिक्षा के सिद्धान्तों को बताइए।
- प्रश्न- गीता दर्शन में शिक्षालयों का स्वरूप क्या था?
- प्रश्न- गीता दर्शन तथा मूल्य मीमांसा को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- गीता में गुरू-शिष्य के सम्बन्ध कैसे थे?
- प्रश्न- आदर्शवाद से आप क्या समझते हैं? आदर्शवाद के मूलभूत सिद्धान्तों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। आदर्शवाद के शिक्षा के उद्देश्यों, पाठ्यचर्या और शिक्षण विधियों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षक की भूमिका को समझाइए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में शिक्षार्थी का क्या स्थान है?
- प्रश्न- आदर्शवाद में विद्यालय की परिकल्पना कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवाद में अनुशासन को समझाइए।
- प्रश्न- आदर्शवाद के विभिन्न स्वरूपों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद का अर्थ एवं परिभाषा दीजिए। प्रकृतिवाद के रूपों एवं सिद्धान्तों को संक्षेप में बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद और शिक्षा पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए। प्रकृतिवादी शिक्षा की विशेषताएँ तथा उद्देश्य बताइए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के शिक्षा पाठ्यक्रम और शिक्षण विधि की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- "प्रकृतिवाद आधुनिक युग में शिक्षा के क्षेत्र में बाजी हार चुका है।" स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आदर्शवादी अनुशासन एवं प्रकृतिवादी अनुशासन की क्या संकल्पना है? आप किसे उचित समझते हैं और क्यों?
- प्रश्न- प्रकृतिवादी शिक्षण विधियों पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद तथा शिक्षक पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की तत्व मीमांसा क्या है?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद की ज्ञान मीमांसा क्या है?
- प्रश्न- प्रकृतिवाद में शिक्षक एवं छात्र सम्बन्ध स्पष्ट कीजिये।
- प्रश्न- प्रकृतिवादी अनुशासन पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिये।
- प्रश्न- शिक्षा की प्रयोजनवादी विचारधारा के प्रमुख तत्वों की विवेचना कीजिए। शिक्षा के उद्देश्यों, शिक्षण विधियों, पाठ्यक्रम, शिक्षक तथा अनुशासन के सम्बन्ध में इनके विचारों को प्रस्तुत कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवादियों तथा प्रकृतिवादियों द्वारा प्रतिपादित शिक्षण विधियों, शिक्षक तथा अनुशासन की तुलना कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- प्रयोजनवाद तथा आदर्शवाद में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ, उद्देश्य तथा शिक्षण-विधि सम्बन्धी विचारों पर प्रकाश डालते हुए गाँधी जी के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी के शिक्षा दर्शन तथा शिक्षा की अवधारणा के विचारों को स्पष्ट कीजिए। उनके शैक्षिक सिद्धान्त वर्तमान भारत की प्रमुख समस्याओं का समाधान कहाँ तक कर सकते हैं?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- बुनियादी शिक्षा का वर्तमान सन्दर्भ में महत्व बताइए।
- प्रश्न- "बुनियादी शिक्षा महात्त्मा गाँधी की महानतम् देन है"। समीक्षा कीजिए।
- प्रश्न- गाँधी जी की शिक्षा की परिभाषा की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- शारीरिक श्रम का क्या महत्त्व है?
- प्रश्न- गाँधी जी की शिल्प आधारित शिक्षा क्या है? शिल्प शिक्षा की आवश्यकता बताते हुए इसकी वर्तमान प्रासंगिकता बताइए।
- प्रश्न- वर्धा शिक्षा योजना पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- शिक्षा के अर्थ एवं उद्देश्यों, पाठ्यक्रम एवं शिक्षण विधि को स्पष्ट करते हुए स्वामी विवेकानन्द के शिक्षा दर्शन की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द के अनुसार अनुशासन का अर्थ बताइए। शिक्षक, शिक्षार्थी तथा विद्यालय के सम्बन्ध में स्वामी जी के विचारों को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में विवेकानन्द के क्या योगदान हैं? लिखिए।
- प्रश्न- जन-शिक्षा के विषय में स्वामी विवेकानन्द के विचार बताइए।
- प्रश्न- स्वामी विवेकानन्द की मानव निर्माणकारी शिक्षा क्या है?
- प्रश्न- डॉ. भीमराव अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर के शिक्षा दर्शन का क्या अभिप्राय है? बताइए।
- प्रश्न- जाति भेदभाव को खत्म करने के लिए डॉ. भीमराव अम्बेडकर की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- डॉ. अम्बेडकर की शिक्षा दर्शन की शिक्षण विधियाँ क्या हैं? बताइए। शिक्षक व शिक्षार्थी सम्बन्ध का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- प्रकृतिवाद के सन्दर्भ में रूसो के विचारों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- मानव विकास की विभिन्न अवस्थाओं हेतु रूसो द्वारा प्रतिपादित शिक्षा योजना का संक्षिप्त वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- रूसो की 'निषेधात्मक शिक्षा' की संकल्पना क्या है? सोदाहरण समझाइए।
- प्रश्न- रूसो के प्रमुख शैक्षिक विचार क्या हैं?
- प्रश्न- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन पर प्रकाश डालते हुए उनके द्वारा निर्धारित शिक्षा व्यवस्था के प्रत्येक पहलू को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- जॉन डीवी के उपयोगिता शिक्षा सिद्धान्त को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- आधुनिक शिक्षण विधियों एवं पाठ्यक्रम के निर्धारण में जॉन डीवी के योगदान का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- बहुलवाद से क्या तात्पर्य है? राज्य के विषय में बहुलवादियों के क्या विचार हैं?
- प्रश्न- बहुलवाद और बहुलसंस्कृतिवाद का क्या आशय है?
- प्रश्न- बहुलवाद, बहुलवादी शिक्षा से आपका क्या आशय है? इसकी विधियाँ बताइये।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण का अर्थ एवं विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण की प्रक्रिया को बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधारों की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक स्तरीकरण में जाति, वर्ग एवं लिंग की भूमिका बताइए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं? विद्यालय संगठन का अर्थ, उद्देश्य एवं इसकी आवश्यकताओं पर प्रकाश डालिए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन की परिभाषाए देते हुए विद्यालय संगठन की विशेषताओं का वर्णन करें।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन एवं शैक्षिक प्रशासन में सम्बन्ध बताइए।
- प्रश्न- विद्यालय संगठन से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन का क्या अर्थ है? इनसे सम्बन्धित धारणाओं का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के दृष्टिकोण से शिक्षा के प्रमुख कार्यों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तनों तथा शिक्षा के पारस्परिक सम्बन्धों को समझाइए |
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में विद्यालय की भूमिका को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन में बाधा उत्पन्न करने वाले कारकों का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन की विशेषताएँ बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक परिवर्तन के प्रारूप बताइए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता से आप क्या समझते हैं? सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न कारक एवं शिक्षा की भूमिका का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सामाजिक गतिशीलता के विभिन्न रूपों का विवेचन कीजिए।
- प्रश्न- उच्चगामी गतिशीलता क्या है?
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों का महत्व तथा अर्थ बताइये। मौलिक अधिकार व्यवस्था की प्रमुख विशेषताएँ बताइये।
- प्रश्न- भारतीय नागरिकों को प्राप्त मूल अधिकारों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान के अधिकार पत्र की प्रमुख विशेषताओं को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- मानव अधिकारों की रक्षा के लिए किये गये विशेष प्रयत्न इस दिशा में कितने कारगर हैं? विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं मानव अधिकारों में अन्तर लिखिए।
- प्रश्न- भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों के उल्लेख की आवश्यकता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकार एवं नीति-निदेशक तत्वों में अन्तर बतलाइये।
- प्रश्न- विचार एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- सम्पत्ति के अधिकार पर टिप्पणी लिखिए।
- प्रश्न- 'निवारक निरोध' से आप क्या समझते हैं?
- प्रश्न- क्या मौलिक अधिकारों को निलंबित किया जा सकता है?
- प्रश्न- मौलिक कर्त्तव्य कौन-कौन से हैं? इनके महत्व पर प्रकाश डालिये।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्त्तव्यों की प्रकृति तथा इनके महत्व का उल्लेख कीजिए।
- प्रश्न- 'अधिकार तथा कर्तव्य एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस कथन की विवेचना कीजिए।
- प्रश्न- नागरिकों के मूल कर्तव्यों का संक्षिप्त विश्लेषण कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक कर्तव्यों का मूल्यांकन कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों से आप क्या समझते हैं? संविधान में इनके उद्देश्य एवं महत्व का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- संविधान में वर्णित नीति निदेशक सिद्धान्तों की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मौलिक अधिकारों तथा नीति निदेशक सिद्धान्तों में क्या अन्तर है? स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों के क्रियान्वयन की आलोचनात्मक व्याख्या अपने शब्दों में कीजिए।
- प्रश्न- नीति-निदेशक तत्वों का अर्थ बताइए।
- प्रश्न- राज्य के उन नीति निदेशक तत्वों का उल्लेख कीजिये जिन्हें गांधीवाद कहा जाता है।
- प्रश्न- नीति निदेशक सिद्धान्तों का महत्व स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- नीति निदेशक तत्वों की प्रकृति अथवा स्वरूप को स्पष्ट कीजिए।
- प्रश्न- राष्ट्रीय विकास में शिक्षा की भूमिका को विस्तार से बताइए।
- प्रश्न- सतत् विकास के लिए शिक्षा से आप क्या समझते हैं? सतत् विकास में शिक्षा की अवधारणा और उत्पत्ति का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सहस्राब्दी विकास लक्ष्य मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स का निर्धारण कौन-सा संस्थान करता है?
- प्रश्न- एमडीजी और एसडीजी के मध्य अन्तर बताइए।
- प्रश्न- ज्ञान अर्थव्यवस्था की राह पर विकास के संकेतक के रूप में शिक्षा को संक्षेप में बताइए। ज्ञान अर्थव्यवस्था के महत्व को भी बताइए।
- प्रश्न- शिक्षा के उद्देश्य को प्रभावित करने वाले कारकों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ एवं उद्देश्यों का वर्णन कीजिए।
- प्रश्न- सतत् शिक्षा के प्रमुख अभिकरण की व्याख्या कीजिए।
- प्रश्न- मिलेनियम डेवलपमेंट गोल्स (MDGs) व सतत् विकास लक्ष्य (एसडीजी) क्या है? बताइए।